Paise Ki Kimat A Motivational Hindi Story

पैसे की कीमत एक शिक्षाप्रद और जीवन को सुखमय बनाने वाली कहानी

Paise Ki Kimat :- पुराने समय की बात है रूद्रपुर नाम के एक छोटे से गांव में हल्कू नाम का एक किसान रहता था। उसके एक पुत्र था, जिसका नाम मल्कू था। यूँ तो मल्कू अच्छा लड़का था, पर उसमे एक खराब आदत थी। वह बेहद खर्चीला था। वह अपने पिता से पैसे मांगता और उन्हें तुरंत खर्च कर देता, फिर पिता से पैसे मांगने पहुंच जाता। हल्कू परेशान था। उसने सोचा की अगर मल्कू ऐसे ही पैसे खर्च करता रहा तो कभी भी पैसे की कीमत नहीं पहचान पायेगा और भविष्य में गरीब हो जायेगा।



हल्कू ने पुत्र को समझाया।  उसने मल्कू को पास बुलाकर बैठाया और कहा , ‘ बेटा , मै एक बहुत गरीब व्यक्ति के घर पैदा हुआ था।  मेरे पिता बकरियां चराया करते थे, जिनसे उन्हें थोड़े से पैसे मिल जाया करते थे।  इसलिए मै ज्यादा पढ़ नहीं पाया और पिता का सहयोग करने लगा।  इससे हम दोनों ज्यादा बकरियां चराने लगे और घर में पैसा भी ज्यादा आने लगा।  अपने कमाए पैसे को मै खर्च नहीं करता , बल्कि उन्हें जोड़ता रहा।  पिता की मृत्यु के बाद उन जोड़े हुए पैसे से मैंने एक जमीन खरीदी।  उसमे सब्जियां बोने लगा।  उसमे से भी पैसा बचा बचाकर मैंने छोटा सा माकन भी बना लिया।  बेटा , अगर मै भी तुम्हारी तरह पैसे खर्च करता रहता , तो मै भी आज दरिद्र ही रहता। ‘

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मल्कू पर इन बांटो का कोई असर नहीं पड़ा।  वह तो पहले की तरह पैसे खर्च करता रहा।  एक दिन हल्कू को परेशान और उदास देखकर उसके मित्र ख्यालीराम ने पूछा।  हल्कू की परेशानी सुनकर ख्याली ने एक योजना बनाई  , जो हल्कू को भी बहुत पसंद आई।  हल्कू ने अपने बेटे मल्कू से कहा , ‘ बेटा , मै रोजाना बाजार जाकर सब्जी बेचकर आता हूँ।  वहां से लौटकर कमाए हुए पैसों में से मै तुम्हे दस रुपया रोज दूंगा।  उसमे से तुम पांच रुपए खर्च करना और पांच रुपए पास के कुएं में फेंक देना। ‘ मल्कू को और क्या चाहिए था ? उसे रोजाना दो चार रुपए की जगह पुरे पांच रुपए खर्च करने को जो मिल रहे थे। वह पिता से रोजाना दस रुपए लेता, पांच खर्च करता और पांच रुपए कुएं में फेंक आता। एक दिन योजना के अनुसार हल्कू ने बीमार होने का बहाना बनाया। उसने मल्कू को बुलाकर कहा, ‘ बेटा मल्कू, मै बहुत बीमार हूँ। कल से तुम्हे ही कुछ दिन के लिए खेत पर जाकर काम करना होगा, नहीं तो मै तुम्हें पैसे कहां से दूंगा?’

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अगले दिन सुबह ही मल्कू खेत पर चला गया। वहां उसे दिन भर कड़ी मेहनत करनी पड़ी। शाम को उसे सब्जियां बेचने बाजार भी जाना पड़ा। लौटने पर वह थककर चूर था। उसने दस रुपए ही कमाए। पांच खर्च किए और बांकी के पांच पास के कुएं में फेकने चला आया। उसके मन में सवाल आया की इतनी मेहनत से कमाए पैसे को मैं कुएं में क्यों फेंक रहा हूँ? फिर भी बुझे मन से वह पांच रुपए कुएं में फेंक ही आया।

अगले दिन भी ऐसा ही हुआ। मगर कुएं में पैसे फेंकते हुए मल्कू को अब तकलीफ हुई। काफी देर तक वहां खड़ा रहने के बाद आखिर उसने फिर से पांच रुपए कुएं में फेंक दिए और घर चला गया। तीसरे दिन तो उससे नहीं रहा गया। वह कुएं में पैसे फेंके बिना ही चुपचाप चला आया। पिता हल्कू ने कारण पूछा तो उसने कहा, ‘ पिताजी, इतनी मेहनत से कमाए पैसे हम कुएं में क्यों फेंके? अगर इन्हें हम जोड़ें तो भविस्य में कोई बड़ी और उपयोगी चीज खरीद सकते है।’

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Paise Ki Kimat A Motivational Hindi Story

हल्कू बोला, ‘ बेटा, जब मैं तुम्हें रोजाना दस रुपए देता था, तब तुमने यह बात क्यों नहीं सोंची?’ ‘पिताजी, वह मेरी भूल थी, आप दिन भर खेत में पसीना बहते और मै मुर्ख उनके पैसो को कुएं में फेंक आता।’



हल्कू मुस्कुराया। बोला , बेटा , वह कुआं सूखा है।  उसमे सीढियाँ बानी हैं , जाओ उसमे से फेंके हुए पैसे निकाल लाओ। ‘ पिता के आदेश के मुताबिक मल्कू कुएं में उतरा।  वहां ढेर सारे पैसे देख कर वह हक्का – बक्का रह गया।  वह ख़ुशी-ख़ुशी सारे पैसे लेकर घर चला आया।  रास्ते में उसने सोचा की वह पांच रुपए बेकार की चीजों में खर्च करता है , उन्हें भी जोड़ें तो भविष्य में साईकिल खरीद सकता है।  और भी जोड़ें तो पिताजी के लिए मोटर साईकिल खरीदी जा सकती है।  उसने पिताजी से यह योजना बताई तो हल्कू ने उसे गले से लगा लिया और बोला , ‘ बेटा , अब तुम्हें पैसे की कीमत मालूम हो गई ना ?’ मल्कू रोते हुए बोला , ‘ पिताजी , मुझे माफ़ कर दीजिए। ‘ हल्कू ने उसे और कसकर गले से लगा लिया।

Paisi Ki Kimat Kahani

अब मल्कू समझदार हो गया था। वह पढ़ाई से बचे समय में पिता का हांथ बांटता। बहुत आवश्यक होने पर ही पैसे खर्च करता, नहीं तो उन्हें बचाकर रख लेता। कुछ ही वर्षो बाद उसने पुरे खेत का काम संभाल लिया। बचाए हुए पैसों से उसने एक और खेत खरीद लिया, बड़ा मकान बना लिया। घर में सुख-सुविधा का सारा सामान ले लिया। हल्कू यह देखकर बड़ा खुश होता। जब भी उसे अपना मित्र ख्यालीराम मिलता। हल्कू उसे धन्यबाद देना नहीं भूलता।

लेखक:- महेंद्र तिवारी