संदूक का रहस्य्मयी सन्देश एक शिक्षाप्रद और रहस्मयी कहानी

An Instructive And Suspenseful Story 

Story 01 संदूक का सन्देशआज से करीब दो सौ साल पीला अयप्पा नाम का किसान दक्षिण भारत के समकोड़ि गांव में रहता था। उसको अपने तीन पुत्रों से बड़ा प्रेम था। अयप्पा ने बड़े ही लाड प्यार से उनका पालन-पोषण किया।

तीनो जब जवान हो गए तो उन्होंने अपने पिता से दूसरे गांव जाने की आज्ञा मांगी। तीनो पिता के स्वीकृति प्राप्त करके सौ कोस दूर उमकोड़ि गांव में मेहनत- मजदूरी करने चले गए।

समय पंखा लगा कर उड़ता रहा और छह माह बीत गए। एक दिन किसान को अपने बेटों की बड़ी याद आई। उसने तीन कबूतरों के पैरों में पत्र बांधकर पुत्रो को सदेश भिजवा दिया।



पहला कबूतर बड़े पुत्र के पास पहुंचा, उस समय वह मेले में आनंद मना रहा था। अनमने से उसने पत्र पढ़ा और भूल गया। जब दूसरे पुत्र को पत्र मिला तो उस समय वह बालो में चमेली का तेल लगा रहा था। कबूतर से पत्र लेकर पढ़ने ही वाला था की तेल की शीशी पत्र पर लुढ़क गई। तीसरा पुत्र मंदिर में देवता का दर्शन करने जा रहा था। कबूतर से पत्र पाकर उसने अपने भाईयों को कुछ नहीं बताया। लालच से वह सीधा ही पिता से मिलने चला गया।

संदूक का रहस्य्मयी सन्देश An Instructive And Suspenseful Story

दो दिन तक सौ कोस चलकर वह अपने पिता के घर पहुंचा। पिता देहरी पर बैठा प्रतीक्षा कर रहा था। पुत्र को अकेला देखकर वह समझ गया और मुस्कुराया। महीनों बाद अयप्पा ने आनंद से भोजन किया। भोजन के बाद अयप्पा ने पुत्र को तीन संदूक दिए कहा की वह अपना संदूक ले, बांकी दोनों भाईयों को दे।

पिता से आज्ञा लेकर अगले दिन छोटा पुत्र तीन संदूक लेकर उमकोड़ि वापस चल दिया। रास्ते में उसे रहा नहीं गया। उसने सबसे पहले बड़े भाई का संदूक खोल लिया। संदूक में एक लाल वस्त्र के भीतर कुछ रखा हुआ था। छोटे पुत्र ने वस्त्र को टटोला, एक कागज निकला उसमे यह हिदायत दी गई थी की संदूक खोलने वाला अपनी मुहर लगाकर यह वचन देगा की हर पंद्रह दिन बाद उसका एक दिन अपने पिता को समर्पित होगा। लाचार पुत्र को मुहर लगानी पड़ी।



थोड़ी देर बाद उसने मंझले भाई का संदूक भी खोलकर देखना चाहा। संदूक खोला तो उसमें भी एक कागज था। कागज में लिखा था की पत्र पढ़ने वाला अपनी मुहर लगाकर यह वचन दे की जीवन भर वह भाईयों से बैर नहीं रखेगा। लाचार छोटे पुत्र को मुहर लगानी पड़ी। अब मन मसोस कर जब उसने अपना संदूक खोला तो उसके भीतर भी एक कागज था की मुहर लगाकर वचन दो की तुम दोनों संदूक का भेद अपने सिवा किसी को नहीं कहोगे। उसे ऐसा करना पड़ा।

पंद्रह दिन बाद वह पिता के गांव वापस आया। पिता मुस्कुराकर अनजान बना रहा। जीवन भर उसने बड़े भाईयों से स्नेह बनाए रखा। बस उसके भाई यह कभी न समझ पाए की यह हर पंद्रह दिन बाद सौ कोस चलकर पिता के गांव क्यों जाता है।

लेखिका :- पूनम पांडे